पेट में क्षत या छाले होने को चिकित्सकीय भाषा में अल्सर या पेप्टिक अल्सर कहते हैं। पेट में गाढ़े तरल पदार्थ म्युकस की एक चिकनी परत होती है, जो पेट की अन्दरूनी परत को हाइड्रोक्लोरिक एसिड से बचाती है। इस एसिड की खासियत यह है कि जहां यह एसिड पाचन प्रक्रिया के लिए अहम होता है, वहीं शरीर के ऊतकों को नुकसान भी पहुंचाता है। इस एसिड और म्युकस परतों के बीच मेलजोल होता है। इस संतुलन के बिगड़ने पर ही पेट में छाले होते हैं।

सामान्यतः यह छाले आहार नली पेट और छोटी आंत के ऊपरी भाग में होते हैं। पेट में अल्सर को आमतौर पर गैस्ट्रिक अल्सर भी कहते है जो की पेट की परत पर होने वाले दर्दनाक फोड़े व घाव होते हैं। पेप्टिक अल्सर आमतौर पर वो बीमारी होती है, जो बड़ी और छोटी आंतों को प्रभावित करती है।

पेट में अल्सर होने के मुख्य कारण क्या है?

पेट में अल्सर होने का मुख्य कारण पेट में उत्पन्न हुआ हाइड्रोक्लोरिक एसिड होता है यह पाचन रस पेट या छोटी आंत की दीवारों को नुकसान पहुंचाते हैं, तो अल्सर बन जाता है और पेट में अल्सर का मुख्य कारण भी पेट में अम्ल का बढ़ना होता है |

इसके दो प्रमुख कारण हैं –

बैक्टीरिया – इसे हेलिकोबैक्टर पाइलोरी कहा जाता है। एच. पाइलोरी से प्रभावित अधिकांश लोगों को अल्सर नहीं होता है, लेकिन दूसरों में, यह एसिड की मात्रा बढ़ा सकता है, सुरक्षात्मक बलगम की परत को तोड़ सकता है, और पाचन तंत्र को परेशान कर सकता है। जिससे अल्सर होने की संभावनाएं बढ़ जाती है विशेषज्ञ अब तक यह नहीं जान पाये है कि एच. पाइलोरी संक्रमण कैसे फैलता है? यह एक प्रकार का संक्रमण रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास आने से होता है, यह ख़राब भोजन और पानी से भी हो सकता है।

दर्द निवारक दवाएं – यदि आप अक्सर और लंबे समय से एस्पिरिन ले रहें हैं, तो आपको पेप्टिक अल्सर होने की अधिक संभावना है। यह भी सच है कि अन्य नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) लेने से भी होता है। NSAIDs आपके शरीर को एक ऐसा रसायन बनाने से रोकते हैं, जो आपके पेट की छोटी दीवारों और पेट की छोटी आंत को एसिड से बचाने में मदद करता है। अन्य प्रकार के दर्द की दवाई,
जैसे -एसिटामिनोफेन ।

इसके अलावा व्यक्ति की कुछ साधारण आदतों के कारण भी पेट में अल्सर होने की आशंका रहती है –

  • धूम्रपान की आदत
  • नशे जैसे शराब या मारिजुआना की लत (जिस खाने से पेट और सीने में जलन हो (एसिड फ़ूड) ऐसे खाने का अधिक मात्रा में सेवन करना)
  • मानसिक और शारीरक तनाव

अगर आप भी इन आदतों का शिकार हैं, तो तुरंत इन्हें छोड़ने की कोशिश करें। पेप्टिक अल्सर होने के बाद इन आदतों के कारण स्थिति अधिक गंभीर हो सकती है।

पेट में अल्सर के मुख्य लक्षण कौनसे है?

पेट में अल्सर होने की अवस्था में व्यक्ति को विभिन्न लक्षणों का आभास हो सकता है | यह सभी लक्षण मरीज की स्थिति की गंभीरता पर निर्भर करते हैं। सामान्यतः पेट में अल्सर से पीड़ित मरीज़ को आहार नली में जलन और दर्द महसूस होता है। यह दर्द खाली पेट की अवस्था में अधिक तीव्र होता है, जो कि काफी लंबे अंतराल तक व्यक्ति को परेशान कर सकता है। पेट में अल्सर का दर्द व्यक्ति दर व्यक्ति कुछ मिनटों से लेकर कई घंटों तक रहता है यानी यह मरीज की अवस्था पर निर्भर करता है |

पेट में अल्सर होने के लक्षण निम्न हैं –

  • पेट में बिना किसी कारण दर्द होना
  • उल्टी होना
  • पेट का फूलना
  • सीने में जलन
  • खून की कमी
  • गहरा मल आना
  • मल में खून आना

इस तरह के लक्षण व्यक्ति को प्रभावित करने के साथ ही उसकी पाचन क्रिया को भी कमजोर कर देते हैं |

अगर पेट में अल्सर का समय रहते इलाज न करवाया जाए तो इससे प्रभावित पीड़ित को जान का भी नुकसान संभव है। हालांकि पेट में अल्सर का जल्द से जल्द परीक्षण करवाने पर सही इलाज की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है और इसके बढ़ते प्रभाव को भी कम किया जा सकता है

पेट में अल्सर का इलाज कैसे होता है?

पेप्टिक अल्सर का इलाज छाले होने के कारण पर निर्भर करता है। ज्यादातर मामलों में पेप्टिक अल्सर को डॉक्टर द्वारा बताई गई दवा से ठीक किया जा सकता है। हालांकि कुछ दुलर्भ मामलों में मरीज को सर्जरी की भी आवश्यकता पड़ सकती है।

एच.पाइलोरी के कारण होने वाले इस बीमारी का इलाज कुछ दवाइयों के मिश्रण से किया जाता है।

एंटासिड्स – एसिड ब्लॉकर्स या प्रोटॉन पंप इनहिबिटर – अल्सर की दवा के रूप में इन्हें 2 महीने या उससे अधिक समय तक लेने की सलाह अक्सर दी जाती है। जिससे यह पेट में अम्ल की मात्रा को कम करने और पेट की परत को बचाने में सहायता करते हैं। ताकि अल्सर ठीक होने में मदद हो सके।

यह बेहद आवश्यक है कि आप पेट में अल्सर का सही इलाज करवाएं अन्यथा पेट की यह स्थिति आगे चल के जानलेवा हो सकती है। अगर आपको पेट में अलसर के कारण ब्लीडिंग की शिकायत है, तो हो सकता है की एंडोस्कोपी ट्रीटमेंट के लिए आपको कुछ समय अस्पताल में ही रहना पड़े।

इसके अलावा स्थिति की गंभीरता के अनुसार इस बीमारी का इलाज किया जाता हैं।