आज के समय में भागदौड़ भरी जिंदगी, तनाव, और बदलती जीवनशैली के कारण कई तरह की शारीरिक और मानसिक बीमारियाँ तेजी से बढ़ती जा रही हैं। आमतौर पर हम अक्सर शरीर की छोटी-छोटी परेशानियों या शारीरिक बीमारियों पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन जब बात मानसिक स्वास्थ्य की आती है, तो उसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जोकि हमें नहीं करना चाहिए। शारीरिक की तरह मानसिक बीमारियां भी गंभीर होती है और उनका समय पर इलाज जरूरी है।
मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियों में कुछ ऐसी बीमारियां भी होती हैं जो धीरे-धीरे व्यक्ति की सोच, समझ और व्यवहार को प्रभावित करती हैं। सही जानकारी और समय पर उपचार न मिलने पर मानसिक बीमारियों के परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। ऐसी ही एक बीमारी है सिज़ोफ्रेनिया, जो व्यक्ति के दिमाग की कार्यप्रणाली को गहराई से प्रभावित करती है। इस आर्टिकल में हम सिजोफ्रेनिया के बारे में विस्तार से जानेंगे।
सिज़ोफ्रेनिया क्या है?
सिज़ोफ्रेनिया एक मानसिक स्वास्थ्य विकार है जिसमें मस्तिष्क के न्यूरोट्रांसमीटरों का असंतुलन होता है, फलस्वरूप व्यक्ति की सोच, भावनाओं और व्यवहार में गड़बड़ी जैसे परिणाम देखने को मिलते हैं। सिज़ोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक विकार है जो व्यक्ति के सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है।
सिज़ोफ्रेनिया को आमतौर पर लंबे समय तक चलने वाला मानसिक रोग माना जाता है, जिसके कारण व्यक्ति को अपनी सामाजिक, व्यावहारिक और मानसिक कार्यक्षमता में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सिज़ोफ्रेनिया के कारण व्यक्ति को भ्रम, मतिभ्रम, अव्यवस्थित सोच जैसी समस्याएं सामने आती हैं। जिससे वह सामाजिक जीवन से कट जाता है।
सिज़ोफ्रेनिया के कारण
सिज़ोफ्रेनिया होने के सटीक कारण अब तक पूर्ण रूप से ज्ञात नहीं हैं, लेकिन यह माना जाता है कि यह विभिन्न कारकों के संयोजन से होता है।
- आनुवंशिक कारण: परिवार में यदि किसी को यह मानसिक रोग है तो उसके परिवार में या अगली पीढ़ी में इसका जोखिम बढ़ जाता है।
- मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन: खासकर डोपामाइन और ग्लूटामेट जैसे न्यूरोट्रांसमीटरों की असंतुलित मात्रा के कारण भी सिजोफ्रेनिया का असर देखने को मिलता है।
- तनाव या चोट : हमारी तनावपूर्ण जीवनशैली, बचपन में हुए टॉक्सिक अनुभव या दिमागी चोट आदि के कारण भी यह रोग हो सकता है।
- मनोरोग संबंधी कारण: व्यक्ति के मस्तिष्क के विकास में बाधा, मस्तिष्क का पूर्ण विकास नहीं होना या अन्य कोई विकार भी इसके कारक हो सकते हैं।
सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण
सिज़ोफ्रेनिया के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं, जिनमें मुख्य रूप से कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं।
- मतिभ्रम: व्यक्ति के द्वारा ऐसी गलत धारणाएं बनाना, जो सत्य नहीं होते हुए भी व्यक्ति को सच्ची लगती हैं। सामान्य शब्दों में कहे तो व्यक्ति की मति यानी बुद्धि भ्रमित हो जाना।
- भ्रम: व्यक्ति के द्वारा बिना किसी बाहरी कारण के आवाजें सुनना या चीजें देखना जो वास्तविक में नहीं होतीं। दूसरे शब्दों में कहे तो व्यक्ति हर समय में भ्रम में रहता है।
- सोचने और बोलने में अस्पष्टता: व्यक्ति के द्वारा स्पष्ट और तार्किक बातें न कर पाना। साथ ही, व्यक्ति के द्वारा अजीब बातें करना। ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई।
- सामाजिक दूरी: व्यक्ति के द्वारा अकारण परिवार और दोस्तों से खुद को अलग कर देना। परिवार और दोस्तों से घुलना मिलना नहीं होना। उनके बातें भी कम कर देना।
- भावनात्मक दूरी: व्यक्ति के द्वारा अपनी भावनाओं का कम अनुभव करना या अन्य के समक्ष अभिव्यक्त न कर पाना। खुद का अकेला अनुभव करना।
सिज़ोफ्रेनिया दिमाग को कैसे प्रभावित करता है
सिज़ोफ्रेनिया मस्तिष्क की संरचना और कार्य में गहरे प्रभाव डालता है। यह मुख्य रूप से निम्नलिखित तरीकों से दिमाग को प्रभावित करता है, जो इस प्रकार हैं।
- सिजोफ्रेनिया केई स्थिति में मस्तिष्क के निलय (ventricles) बढ़ सकते हैं, जिससे मस्तिष्क के अन्य हिस्सों पर दबाव पड़ता है।
- सिजोफ्रेनिया से मस्तिष्क के ग्रे मैटर की मात्रा कम होती है, जो सोच, महसूस और व्यवहार को नियंत्रित करता है।
- सिजोफ्रेनिया से न्यूरोट्रांसमीटर डोपामाइन, सेरोटोनिन, ग्लूटामेट का असंतुलन होता है, जिससे मस्तिष्क का संचार प्रभावित होता है।
- सिजोफ्रेनिया से व्यक्ति की वास्तविकता समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे मतिभ्रम और भ्रम की स्थिति बनती है। साथ ही, सोचने, ध्यान देने, निर्णय लेने और भावनाओं के नियंत्रण में बाधा आती है। परिणामस्वरूप मानसिक प्रक्रिया विकृत हो जाती है और रोगी अपनी दैनिक जीवन की सामान्य गतिविधियां करने में असमर्थ हो सकता है।
सिज़ोफ्रेनिया का उपचार क्या है
सिज़ोफ्रेनिया का पूरी तरह से कोई स्थायी इलाज अब तक नहीं मिल सका है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित और प्रबंधित जरूर किया जा सकता है। सिज़ोफ्रेनिया के उपचार के लिए एंटीसाइकोटिक दवाएं प्रमुख होती हैं जो मस्तिष्क के रासायनिक असंतुलन को सुधारती हैं और मतिभ्रम, भ्रम को कम करती हैं। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक थैरेपी (CBT), काउंसलिंग, डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (DBS), जीवनशैली में सुधार, डॉक्टर कंसल्टेशन आदि से सिज़ोफ्रेनिया पर नियंत्रण संभव है।
